देश भक्ति पर छोटी कविता | Desh bhakti poem in Hindi

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देश भक्ति पर छोटी कविता | Desh bhakti poem in Hindi

ऐ मेरे प्यारे वतन

ऐ मेरे प्यारे वतन,

ऐ मेरे बिछड़े चमन

तुझ पे दिल कुरबान

तू ही मेरी आरजू़,

तू ही मेरी आबरू

तू ही मेरी जान

तेरे दामन से जो आए

उन हवाओं को सलाम

चूम लूँ मैं उस जुबाँ को

जिसपे आए तेरा नाम

सबसे प्यारी सुबह तेरी

सबसे रंगी तेरी शाम

तुझ पे दिल कुरबान

माँ का दिल बनके कभी

सीने से लग जाता है तू

और कभी नन्हीं-सी बेटी

बन के याद आता है तू

जितना याद आता है मुझको

उतना तड़पाता है तू

तुझ पे दिल कुरबान

छोड़ कर तेरी ज़मीं को

दूर आ पहुँचे हैं हम

फिर भी है ये ही तमन्ना

तेरे ज़र्रों की कसम

हम जहाँ पैदा हुए उस

जगह पे ही निकले दम

तुझ पे दिल कुरबान

प्रेम धवन

जय जन भारत

जय जन भारत जन- मन अभिमत

जन गणतंत्र विधाता

जय गणतंत्र विधाता

गौरव भाल हिमालय उज्जवल

हृदय हार गंगा जल

कटि विंध्याचल सिंधु चरण तल

महिमा शाश्वत गाता

जय जन भारत …

हरे खेत लहरें नद-निर्झर

जीवन शोभा उर्वर

विश्व कर्मरत कोटि बाहुकर

अगणित-पद-ध्रुव पथ पर

जय जन भारत …

प्रथम सभ्यता ज्ञाता

साम ध्वनित गुण गाता

जय नव मानवता निर्माता

सत्य अहिंसा दाता

जय हे- जय हे- जय हे

शांति अधिष्ठाता

जय -जन भारत…

सुमित्रानंदन पंत

आज़ादों का गीत – हरिवंशराय बच्चन

हम ऐसे आज़ाद, हमारा

झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती

से सजतीं गुड़ियाँ,

इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियाँ,

इनसे सज-धज बैठा करते

जो, हैं कठपुतले।

हमने तोड़ अभी फैंकी हैं

बेड़ी-हथकड़ियाँ,

परम्परा पुरखों की हमने

जाग्रत की फिर से,

उठा शीश पर हमने रक्खा

हिम किरीट उज्जवल!

हम ऐसे आज़ाद, हमारा

झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती

से सज सिंहासन,

जो बैठा करते थे उनका

खत्म हुआ शासन,

उनका वह सामान अजायब-

घर की अब शोभा,

उनका वह इतिहास महज

इतिहासों का वर्णन,

नहीं जिसे छू कभी सकेंगे

शाह लुटेरे भी,

तख़्त हमारा भारत माँ की

गोदी का शाद्वल!

हम ऐसे आज़ाद, हमारा

झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती

से सजवा छाते

जो अपने सिर पर तनवाते

थे, अब शरमाते,

फूल-कली बरसाने वाली

दूर गई दुनिया,

वज्रों के वाहन अम्बर में,

निर्भय घहराते,

इन्द्रायुध भी एक बार जो

हिम्मत से औड़े,

छ्त्र हमारा निर्मित करते

साठ कोटि करतल।

हम ऐसे आज़ाद, हमारा

झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती

का हाथों में दंड,

चिन्ह कभी का अधिकारों का

अब केवल पाखंड,

समझ गई अब सारी जगती

क्या सिंगार, क्या सत्य,

कर्मठ हाथों के अन्दर ही

बसता तेज प्रचंड,

जिधर उठेगा महा सृष्टि

होगी या महा प्रलय,

विकल हमारे राज दंड में

साठ कोटि भुजबल!

हम ऐसे आज़ाद, हमारा

झंडा है बादल!

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

सदा शक्ति बरसाने वाला,

प्रेम सुधा सरसाने वाला

वीरों को हरषाने वाला

मातृभूमि का तन-मन सारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

स्वतंत्रता के भीषण रण में,

लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,

काँपे शत्रु देखकर मन में,

मिट जावे भय संकट सारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

इस झंडे के नीचे निर्भय,

हो स्वराज जनता का निश्चय,

बोलो भारत माता की जय,

स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

आओ प्यारे वीरों आओ,

देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,

एक साथ सब मिलकर गाओ,

प्यारा भारत देश हमारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

इसकी शान न जाने पावे,

चाहे जान भले ही जावे,

विश्व-विजय करके दिखलावे,

तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,

झंडा ऊँचा रहे हमारा।

भारत गीत

भारत गीत

जय जय प्यारा, जग से न्यारा,

शोभित सारा, देश हमारा,

जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा

जग-सौभाग्य सुदेश!

जय जय प्यारा भारत देश।

प्यारा देश, जय देशेश,

जय अशेष, सदस्य विशेष,

जहाँ न संभव अध का लेश,

केवल पुण्य प्रवेश।

जय जय प्यारा भारत देश।

स्वर्गिक शीश-फूल पृथ्वी का,

प्रेम मूल, प्रिय लोकत्रयी का,

सुललित प्रकृति नटी का टीका

ज्यों निशि का राकेश।

जय जय प्यारा भारत देश।

जय जय शुभ्र हिमाचल शृंगा

कलरव-निरत कलोलिनी गंगा

भानु प्रताप-चमत्कृत अंगा,

तेज पुंज तपवेश।

जय जय प्यारा भारत देश।

जगमें कोटि-कोटि जुग जीवें,

जीवन-सुलभ अमी-रस पीवे,

सुखद वितान सुकृत का सीवे,

रहे स्वतंत्र हमेश

जय जय प्यारा भारत देश।

श्रीधर पाठक

तिरंगा गीत

चाँद, सूरज-सा तिरंगा

प्रेम की गंगा तिरंगा

विश्व में न्यारा तिरंगा

जान से प्यारा तिरंगा

सारे हिंदुस्तान की

बलिदान-गाथा गाएगा

ये तिरंगा आसमाँ पर

शान से लहराएगा।

शौर्य केसरिया हमारा

चक्र है गति का सितारा

श्वेत सब रंगों में प्यारा

शांति का करता इशारा

ये हरा, खुशियों भरा है

सोना उपजाती धरा है

हर धरम, हर जाति के

गुलशन को ये महकाएगा।

ये है आज़ादी का परचम

इसमें छह ऋतुओं के मौसम

इसकी रक्षा में लगे हम

इसका स्वर है वंदेमातरम

साथ हो सबके तिरंगा

हाथ हो सबके तिरंगा

ये तिरंगा सारी दुनिया

में उजाला लाएगा।

सुनील जोगी

शहीद की माँ ( हरिवंशराय बच्चन )

इसी घर से

एक दिन

शहीद का जनाज़ा निकला था,

तिरंगे में लिपटा,

हज़ारों की भीड़ में।

काँधा देने की होड़ में

सैकड़ो के कुर्ते फटे थे,

पुट्ठे छिले थे।

भारत माता की जय,

इंकलाब ज़िन्दाबाद,

अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद

के नारों में शहीद की

माँ का रोदन

डूब गया था।

उसके आँसुओ की लड़ी

फूल, खील, बताशों की झडी में

छिप गई थी,

जनता चिल्लाई थी-

तेरा नाम सोने के

अक्षरों में लिखा जाएगा।

गली किसी गर्व से

दिप गई थी।

इसी घर से

तीस बरस बाद

शहीद की माँ का जनाजा निकला है,

तिरंगे में लिपटा नहीं,

(क्योंकि वह ख़ास-ख़ास

लोगों के लिये विहित है)

केवल चार काँधों पर

राम नाम सत्य है

गोपाल नाम सत्य है

के पुराने नारों पर;

चर्चा है, बुढिया बे-सहारा थी,

जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,

गली किसी राहत से

छुई छुई।

जन गण मन ( रवींद्र नाथ ठाकुर )

जन गण मन अधि नायक जय हे!

भारत भाग्य विधाता

पंजाब सिंध गुजरात मराठा,

द्राविण उत्कल बंग।

विंध्य हिमाचल यमुना गंगा,

उच्छल जलधि तरंग

तव शुभ नामे जागे,

तव शुभ आशिष मागे,

गाहे तव जय-गाथा।

जन-गण-मंगलदायक जय हे!

भारत भाग्य विधाता।

जय हे! जय हे! जय हे!

जय जय जय जय हे!

भारत की आरती

देश-देश की स्वतंत्रता देवी

आज अमित प्रेम से उतारती।

निकटपूर्व, पूर्व, पूर्व-दक्षिण में

जन-गण-मन इस अपूर्व शुभ क्षण में

गाते हों घर में 

हों या रण में

भारत की लोकतंत्र भारती।

गर्व आज करता है एशिया

अरब, चीन, मिस्र, हिंद-एशिया

उत्तर की लोक संघ शक्तियां

युग-युग की आशाएं वारतीं।

साम्राज्य पूंजी का क्षत होवे

ऊंच-नीच का विधान नत होवे

साधिकार जनता उन्नत होवे

जो समाजवाद जय पुकारती।

जन का विश्वास ही हिमालय है

भारत का जन-मन ही गंगा है

हिन्द महासागर लोकाशय है

यही शक्ति सत्य को उभारती।

यह किसान कमकर की भूमि है

पावन बलिदानों की भूमि है

भव के अरमानों की भूमि है

मानव इतिहास को संवारती।

लेखक – शमशेर बहादुर सिंह

अंतिम शब्द :-

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