Hindi language poem on earth in hindi | धरती पर हिंदी कविताएँ – दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए लेकर आए हैं, Prithvi per Kavita पृथ्वी पर कविता इन कविताओं को आप World Earth day पर अपने स्कूल और कॉलेज में स्टेज पर सुन सकते हैं।
Poem on earth in hindi आपको पता ही होगा कि इस ब्रह्मांड में करोड़ ग्रह है, परंतु धरती एक ऐसा ग्रह है, जहां पर इंसान जीवित रह सकता है, और यहां पर इंसान के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध होती है, परंतु कहीं ऐसी सुविधा है, जिनको हम नष्ट कर रहे हैं, अपने लालच के वह जहां से जो यह बिल्कुल गलत है, जैसे पेड़ काटना, पानी को दूषित करना, शुद्ध पर्यावरण को दूषित करना इससे एक दिन यह धरती नष्ट हो जाएगी परंतु इस इंसान बचा सकते हैं, इन्हीं के ही बोल आज इन कविता में आपको सुनने के लिए मिलेंगे और आप उन बोल वह बातों पर चलिए। जिससे हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे।

धरती पर हिंदी कविताएँ
1
धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो
बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो
आओ हम सब मिलजुल कर,
इस धरती को ही स्वर्ग बना दें
देकर सुंदर रूप धरा को,
कुरूपता को दूर भगा दें
नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर,
नैतिकता से काम करें
गंदगी फैला भूमि पर
माँ को न बदनाम करें
माँ तो है हम सब की रक्षक
हम इसके क्यों बन रहे भक्षक
जन्म भूमि है पावन भूमि,
बन जाएँ इसके संरक्षक
कुदरत ने जो दिया धरा को
उसका सब सम्मान करो
न छेड़ो इन उपहारों को,
न कोई बुराई का काम करो
धरती हमारी माता है,
माता को प्रणाम करो
बनी रहे इसकी सुंदरता,
ऐसा भी कुछ काम करो
2
धरती का आँगन इठलाता,
शस्य श्यामला भू का यौवन।
अंतरिक्ष का हृदय लुभाता।।
जौ गेहूँ की स्वर्णिम बाली,
भू का अंचल वैभवशाली।
इस अंचल से चिर अनादि से,
अंतरंग मानव का नाता।।
आओ नए बीज हम बोएं,
विगत युगों के बंधन खोएं।
भारत की आत्मा का गौरव,
स्वर्ग लोग में भी न समाता।।
भारत जन रे धरती की निधि,
न्यौछावर उन पर सहृदय विधि।
दाता वे, सर्वस्व दान कर,
उनका अंतर नहीं अघाता।।
किया उन्होंने त्याग तप वरण,
जन स्वभाव का स्नेह संचरण
आस्था ईश्वर के प्रति अक्षय,
श्रम ही उनका भाग्य विधाता।।
सृजन स्वभाव से हो उर प्रेरित,
नव श्री शोभा से उन्मेषित
हम वसुधैव कुटुम्ब ध्येय रख,
बनें नये युग के निर्माता।
3
सुंदर-सुंदर प्यारी-प्यारी
रंग बिरंगी पृथ्वी,
पहनके चुनरिया रंगो वाली
दुल्हन जैसी लगती ।
नीला-नीला आसमान है
बादल है काले-काले,
लाल, सफ़ेद, नीले, पीले
फूल बड़े मतवाले ।
हरियाली की फ़ैली है चादर
सब के मन को हरती,
सुंदर सुंदर प्यारी प्यारी
रंगीली धरती ।
काला कौवा, काली कोयल
भालू भी तो हैं काला,
कूकड़ू-कू भी करता है मुर्गा
लाल कलंगी वाला ।
सुबह-सुबह भूरी चिड़िया
चीं-चीं चीं-चीं करती,
सुंदर-सुंदर और प्यारी-प्यारी
रंग बिरंगी धरती ।
सुंदर-सुंदर प्यारी-प्यारी
रंग बिरंगी धरती,
पहनके चुनरिया रंगो वाली
दुल्हन जैसी लगती ।
पृथ्वी पर कविता हिंदी में short
4
माटी से ही जन्म हुआ है
माटी में ही मिल जाना है
धरती से ही जीवन अपना
धरती पर ही सजे सब सपना
सब जीव जन्तु धरती पर रहते
गंगा यमुना यही पर बहते
सब्जी फल यहाँ ही उगते
धन फसल यहाँ ही उपजे
धरती माँ की देख रेख कर
हमको फर्ज़ निभाना है|
5
आओं हम सब मिलकर,
ये संकल्प उठाएँ,
धरती माँ को फिर से,
सुंदर और स्वच्छ बनाए।
हो सके स्वच्छ जिससे,
भूमि, जल और वायु,
आरोग्य बने, स्वस्थ रहे,
और हो सके जिससे सब दीर्घायु।
हरियाली फैली हो,
हो धरा रंगीली,
सुंदर पुष्पों से महके वन उपवन,
खेतों में फ़सलें हो फूली।
हो स्वच्छ और सुंदर नभ भी,
और पक्षी पंख लहराए,
गाए गीत खुशी के वो,
निडर वो उड़ते जाए।
आओं मिलकर हम सब,
ये संकल्प उठाएँ,
धरती माँ के आँचल को,
स्वर्ग सा सुंदर सजाएं
धरती बचाओ पर कविता
6
धरती कह रही हैं बार बार
सुन लो मनुष्य मेरी पुकार,
बड़े बड़े महलों को बना के
मत डालो मुझ पर भार
पेड़ पौधों को नष्ट करके,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार,
मैं हु सबकी जीवन दाता
मैं हु सबकी भाग्य विधाता,
करने डॉ मुझे सब जीवो पर उपकार,
मत करो मेरे पहाड़ों पर विस्फ़ोटक वार,
मत उजाड़ो मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार,
सुंदर सुंदर बाग़ और बगीचे हैं मेरे,
हे मनुष्य ये सब काम आयेंगें तेरे,
मेरी मिटटी में पला बड़ा तू,
तूने यहीं अपना संसार गाढ़ा हैं,
फिर से कर ले तू विचार,
मत उजाड़ मेरा संसार,
धरती की बस यही पुकार!!
मैं रूठी तो जग रूठा,
अगर मेरे सब्र का बांध टुटा,
नहीं बचेंगा कोई,
मेरे साथ अगर अन्याय करोंगे,
तो न्याय कह से पाओंगे
कभी बाढ़ तो कभी सुखा,
और भूकंप जैसी आपदा सहते जाओंगे,
धरती की बस यहीं पुकार,
मत उजाड़ों मेरा संसार!!
धरती पर छोटी कविता
7
मैं धरती मॉ बोल रही हूं
अनगिन घावों की पीडा में
मन के आंसू घोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।
हरियाली की चादर जर्जर,
तपती गर्म हवाओं का डर
पथरीले पथ पर डगमग पग,
बिना त्राण के डोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।
तन का लहू पिलाकर पाला
सुख स्वप्नों में देखा भाला
सुखद छांव दी तरु-विटपों की
सुरभित कर जीवन का प्याला
पर अपने जाये बेटों ने
श्वेताभा से तन रंग डाला
रंगहीन आंचल संभालती
यात्रा पथ पर घूम रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।
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8
प्रकृति हमारी बड़ी निराली
इससे जुड़ी है ये दुनिया हमारी
प्रकृति से ही है धरा निराली
प्रकृति से ही फैली है हरियाली
वृक्ष प्रकृति का है शृंगार
इनको क्यो काट रहा है इंसान
नष्ट इसे करके अपने ही पाँव पर
कुल्हाड़ी क्यो मार रहा है इंसान
प्रकृति की गोद मे जन्म लिया है
फिर इसको क्यो उजाड़ना चाहता है
स्वार्थ साधने के बाद मूह फेर लेना
क्या मानव यही तेरी मानवता है?
प्रकृति दात्री है जिसने हमे सर्वस्व दिया
पर मानव उसे दासी क्यो समझता है
क्या मानव इतना स्वार्थी है कि
अपनी माँ को ही उजाड़ना चाहता है
Hindi language poem on earth in hindi
9
भूमि, धरती, भू, धरा
तेरे हैं कितने नाम
तू थी रंग बिरंगी
फूल फूलों से भरी भरी
तूने हम पर उपकार किया
हमने बदले में क्या दिया
तुझ से तेरा रूप है छीना
तुझसे तेरे रंग है छीने
पर अब मानव है जाग गया
हमने तुझसे यह वादा किया
अपना जंगल ना काटेंगे
नदियों को साफ रखेंगे
लौटा देंगे तेरा रंग रूप
चाहे हो कितनी बारिश और धूप
धरती पर हिंदी कविताएँ
10
ऊँची धरती नीची धरती,
नीली, लाल, गुलाबी धरती।
हरे-भरे वृक्षों से सज्जित,
मस्ती में लहराती धरती।
कल -कल नीर बहाती धरती,
शीतल पवन चलाती धरती,
कभी जो चढ़े शैल शिखर तो,
कभी सिन्धु खा जाती धरती।
अच्छी -अच्छी फसलें देकर,
मानव को हर्षाती धरती,
हीरा, पन्ना, मोती, माणिक,
जैसे रतन लुटाती धरती।
भेद न करती उंच-नीच का,
सबका बोझ उठाती धरती,
अंत-काल में हर प्राणी को,
अपनी गोद में सुलाती धरती।
जाती धर्म से ऊपर उठ कर,
सबको गले लगाती धरती,
रहे प्रेम से इस धरती पर,
हमको सबक सिखाती धरती।
11
बड़ी-बड़ी बातों से
नहीं बचेगी धरती
वह बचेगी
छोटी-छोटी कोशिशों से
मसलन
हम नहीं फेंकें कचरा
इधर-उधर
स्वच्छ रहेगी धरती,
हम नहीं खोदें गड्ढे
धरती पर
स्वस्थ रहेगी धरती,
हम नहीं होने दें उत्सर्जित
विषैली गैसें
प्रदूषणमुक्त रहेगी धरती,
हम नहीं काटे जंगल
पानीदार रहेगी धरती,
धरती को पानीदार बनाएँ
आओ, धरती बचाएँ।
12
पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ।
समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ उठ गिर गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी मीठी मृदुल उमंग!
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार!
13
है महका हुआ गुलाब
खिला हुआ कंवल है,
हर दिल मे है उमंगे
हर लब पे ग़ज़ल है,
ठंडी-शीतल बहे ब्यार
मौसम गया बदल है,
हर डाल ओढ़ा नई चादर
हर कली गई मचल है,
प्रकृति भी हर्षित हुआ जो
हुआ बसंत का आगमन है,
चूजों ने भरी उड़ान जो
गये पर नये निकल है,
है हर गाँव मे कौतूहल
हर दिल गया मचल है,
चखेंगे स्वाद नये अनाज का
पक गये जो फसल है,
त्यौहारों का है मौसम
शादियों का अब लगन है,
लिए पिया मिलन की आस
सज रही “दुल्हन” है,
है महका हुआ गुलाब
खिला हुआ कंवल है…!!
14
जब भी घायल होता है मन
प्रकृति रखती उस पर मलहम
पर उसे हम भूल जाते हैं
ध्यान कहाँ रख पाते हैं
उसकी नदियाँ, उसके सागर
उसके जंगल और पहाड़
सब हितसाधन करते हमारा
पर उसे दें हम उजाड़
योजना कभी बनाएँ भयानक
कभी सोच लें ऐसे काम
नष्ट करें कुदरत की रौनक
हम, जो उसकी ही सन्तान
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