कुमार विश्वास की प्रेम कविता | Kumar Vishwas ki Kavita

 कुमार विश्वास की प्रेम कविता – आज के इस लेख में हम Kumar Vishwas ki Kavita आपको मशहूर कवि द्वारा रचित चुनिंदा और बेहतरीन प्रेम कविताएं आपके साथ शेयर कर रहे हैं, आज हम बात कर रहे हैं, कुमार विश्वास के बारे में कुमार विश्वास का जन्म गाजियाबाद में हुआ है, और जन्म दिनांक 10 फरवरी 1970 में हुआ था, बचपन में इनको हिंदी साहित्य में बहुत ही ज्यादा रुचि रखते थे और इन्होंने हिंदी साहित्य में अपना करियर बनाया उनकी आनेको प्रकार की प्रसिद्ध कविताएं हैं.

कुमार विश्वास की कविताएं बहुत ही पॉपुलर है, इनकी हर एक पंक्ति में जान होती हैं, आपको बहुत कुछ सीखने के लिए मिलता है, इंटरनेट पर ज्यादा से ज्यादा इन्हीं की कविताएं और इन्हीं के द्वारा रची गई शायरियां सच की जाती है, उम्मीद करता हूं आपको हमारे द्वारा बनाया गया लेख आपको पसंद जरूर आएगा क्योंकि हम उनकी द्वारा रची गई कविताएं और चुनिंदा शायरी आपके बीच में सजा कर रहे हैं।

कुमार विश्वास की प्रसिद्ध कविताएं –हाथों में तिरंगा हो, तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा, बात करनी है, देवदास मत होना, होठों पर गंगा हो, एक पगली लड़की के बिन, महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है, रंग दुनिया ने दिखाया हैहो काल गति से परे चिरंतन, साल मुबारक, बात कौन करे, मैं तो झोंका हूँ.

कुमार विश्वास की कविता

तुम्हीं पे मरता है ये दिल,
अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मों से बंदी है,
बगावत क्यों नहीं करता

सूरज पर प्रतिबंध
अनेकों और भरोसा रातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर

कुछ छोटे सपनों के बदले,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पड़े हैं पांव अभागे,
जाने कौन डगर ठहरेंगे

क़ोशिशें मुझको
मिटाने की मुबारक़ हों मगर
मिटते-मिटते भी मैं
मिटने का मज़ा ले जाऊँगा

कुमार विश्वास की प्रेम कविता

जब भी मुँह
ढंक लेता हूँ
तेरे जुल्फों की
छाँव में

कितने गीत उतर आते हैं
मेरे मन के गाँव में

एक गीत
पलकों पर लिखना

एक गीत
होंठों पर लिखना

यानि सारी
गीत हृदय की
मीठी-सी चोटों पर लिखना

जैसे चुभ जाता है
कोई काँटा नंगे पांव में

ऐसे गीत उतर आते हैं,
मेरे मन के गाँव में

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है,
कोई पागल समझता है,

मगर धरती की बेचैनी को
बस बादल समझता है।

मैं तुझसे दूर कैसा हूँ ,
तू मुझसे दूर कैसी है,

ये तेरा दिल समझता है
या मेरा दिल समझता है।

मोहब्बत एक अहसासों की
पावन सी कहानी है,

कभी कबिरा दीवाना था
कभी मीरा दीवानी है।

यहाँ सब लोग कहते हैं,
मेरी आंखों में आँसू हैं,

जो तू समझे तो मोती है,
जो ना समझे तो पानी है।

समंदर पीर का अन्दर है,
लेकिन रो नही सकता,

यह आँसू प्यार का मोती है,
इसको खो नही सकता।

मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना,
मगर सुन ले,

जो मेरा हो नही पाया,
वो तेरा हो नही सकता।

कुमार विश्वास की कविता

अधरों पर हास लिये।
तन-मन की धरती पर

झर-झर-झर-झर-झरना
साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये।

तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी
जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी

लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी
पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी

सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन
मेरे तट आना।

एक भीगा उल्लास लिये
आना तुम मेरे घर

अधरों पर हास लिये।
जब तुम आओगी तो घर आँगन नाचेगा

अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा
माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी

बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी
कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल, अरूणिम-अरुणिम

पायल की ध्वनियों में
गुंजित मधुमास लिये

आना तुम मेरे घर
अधरों पर हास लिये

नयन हमारे सीख रहे हैं

नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर

सूरज पर प्रतिबंध अनेकों
और भरोसा रातों पर

नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर

हमने जीवन की चौसर पर
दाँव लगाए आँसू वाले

कुछ लोगों ने हर पल, हर दिन
मौके देखे बदले पाले

हम शंकित सच पा अपने,
वे मुग्ध स्वयं की घातों पर

नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर

हम तक आकर लौट गई हैं
मौसम की बेशर्म कृपाएँ

हमने सेहरे के संग बाँधी
अपनी सब मासूम खताएँ

हमने कभी न रखा स्वयं को
अवसर के अनुपातों पर

नयन हमारे सीख रहे हैं
हँसना झूठी बातों पर

मैं तुम्हें अधिकार दूँगा-कुमार विश्वास की कविताएं

मैं तुम्हें अधिकार दूँगा
एक अनसूंघे सुमन की गन्ध सा

मैं अपरिमित प्यार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा।

सत्य मेरे जानने का
गीत अपने मानने का

कुछ सजल भ्रम पालने का
मैं सबल आधार दूँगा

मैं तुम्हे अधिकार दूँगा।
ईश को देती चुनौती,

वारती शत-स्वर्ण मोती
अर्चना की शुभ्र ज्योति

मैं तुम्हीं पर वार दूँगा
मैं तुम्हें अधिकार दूँगा।

तुम कि ज्यों भागीरथी जल
सार जीवन का कोई पल

क्षीर सागर का कमल दल
क्या अनघ उपहार दूँगा

मै तुम्हें अधिकार दूँगा।

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अंतिम शब्द :-

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