Poem on Labour Day in hindi | मजदूर दिवस पर कविता हिंदी में

Poem on Labour Day in hindi – अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस इस दिन को भी हर वर्ष मनाया जाता है, और आज हम इस दिन के अवसर पर आप सभी के लिए श्रमिक दिवस पर कविताएं लेकर आए हैं, जो आपको बहुत ही पसंद आएगी।

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Poem on Labour Day in hindi | मजदूर दिवस पर कविता हिंदी में

1

 मैं एक मजदूर हूँ,

ईश्वर की आंखों से मैं दूर हूँ।

छत खुला आकाश है,

हो रहा वज्रपात है।

फिर भी नित दिन मैं,

गाता राम धुन हूं।

गुरु हथौड़ा हाथ में,

कर रहा प्रहार है।

सामने पड़ा हुआ,

बच्चा कराह रहा है।

फिर भी अपने में मगन,

कर्म में तल्लीन हूँ।

मैं एक मजदूर हूँ,

भगवान की आंखों से मैं दूर हूँ।

आत्मसंतोष को मैंने,

जीवन का लक्ष्य बनाया।

चिथड़े-फटे कपड़ों में,

सूट पहनने का सुख पाया

मानवता जीवन को,

सुख-दुख का संगीत है।

मैं एक मजदूर हूँ,

भगवान की आंखों से मैं दूर हूँ।

2

दुनिया जगर-मगर है

कि मज़दूर दिवस है

दुनिया जगर-मगर है

कि मज़दूर दिवस है

चर्चा इधर-उधर है

कि मज़दूर दिवस है

मालिक तो फ़ायदे की

क़वायद में लगे हैं

उन पर नहीं असर है

कि मज़दूर दिवस है

ऐलान तो हुआ था कि

घर इनको मिलेंगे

अब भी अगर-मगर है

कि मज़दूर दिवस है

साधन नहीं है कोई भी,

भरने हैं कई पेट

इक टोकरी है, सर है

कि मज़दूर दिवस है

हाथों में फावड़े हैं ‘यती’

रोज़ की तरह

उनको कहाँ ख़बर है कि

मज़दूर दिवस है

3

पत्थर तोड़ रहा मजदूर

पत्थर तोड़ रहा मजदूर

थक के मेहनत से है चूर

फिर भी करता जाता काम

श्रम की महिमा है मशहूर

मेहनत से न पीछे रहता

कभी काम से न ये डरता

पर्बत काट बनाता राह

नव निर्माण श्रमिक है करता

नदियों पर ये बांध बनाता

रेल पटरियां यही बिछाता

श्रम की शक्ति से मजदूर

कल कारखाने भवन बनाता

खेत में करता मेहनत पूरी

पाता है किसान मजदूरी

कतराता जो भी है श्रम से

उसे घेरती है मज़बूरी

4

इन आँखों की क्या मज़ाल थी

कि वो भी देखले ख़्वाब अपना

ये कलयुग की दुनिया है प्यारे

आसां नहीं यहां अपने सपनों को पूरा करना

ख़्वाबों की तो बात ही दूर

इंसान यहाँ हालातों से मज़बूर

अपने सपनों को दफ़न कर

दुनिया के आशियाने बनाता मज़दूर

ज़िन्दगी के ऐशों आराम पाने को

आदमी दिन रात पैसों के पीछे भागता है

मज़दूर है कि मेहनत कर

पूरे परिवार का पेट पलता है

कमाल कारीगिरी इन मज़दूरों की

जो कागज़ पर बने नक्शों को

ईमारत के रूप में ढालता है।।।

5

किस्मत से मजबूर हूँ।

सपनों के आसमान में जीता हूँ,

उम्मीदों के आँगन को सींचता हूँ।

दो वक्त की रोटी खानें के लिये,

अपने स्वभिमान को नहीँ बेचता हूँ।

तन को ढकने के लिये

फटा पुराना लिबास है।

कंधों पर जिम्मेदारीहै

जिसका मुझे अहसास है।

खुला आकाश है छत मेरा

बिछौना मेरा धरती है।

घास-फूस के झोपड़ी में

सिमटी अपनी हस्ती है।

गुजर रहा जीवन अभावों में,

जो दिख रहा प्रत्यक्ष है।

आत्मसंतोष ही मेरे

जीवन का लक्ष्य है।

गरीबी और लाचारी से जूझ

जूझकर हँसना भूल चुका हूँ।

अनगिनत तनावों से लदा हुआ,

आँसू पीकर मजबूत बना हूँ।

6

वह मजबूर नहीं है बिलकुल

उसको भी जीना आता है

कहते हो मजदूर उसे तुम

“वो खुद्दारी का खाता है !”

न वो तुमसे माँगने जाये

न ही कहीं हाथ फैलाये

जितनी जैसी मिल जाती है

खुशियाँ घर ले आता है

कहते हो मजदूर उसे तुम

“वो खुद्दारी का खाता है !”

एक एक दिन साल महीना

खून को अपने बना पसीना

सारे दुःखों के बादल वो

उससे रंगता जाता है

कहते हो मजदूर उसे तुम

“वो खुद्दारी का खाता है.

अंतिम शब्द :- हमारे द्वारा शेयर की गई मजदूर दिवस पर कविता हिंदी में पसंद आए तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें और कमेंट जरुर करना।

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