आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई अर्थ सहित ( Ramayan ki sarvshreshth chaupai Arth sahit ) इन रामायण की चौपाई का हर रोज पाठ करने से मन की शांति प्राप्त होती हैं, और सभी काम रुके हुए हैं, वह होने लगते हैं और भगवान की कृपा प्राप्ति होती हैं, परिवार में सुख शांति हमेशा बनी रहती हैं और भगवान श्री राम की हमेशा कृपा बरसती है, और इन चौपाई का नियमित पाठ करने से सभी संकटों का विनाश हो जाता है।

रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई अर्थ सहित
|| श्री रामावतार ||
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,’ कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी, मुनि मन हारी,’ अद्भुत रूप बिचारी
अर्थ :- दिनों पर दया करने वाले, कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए, मुनियों के मन को हरने वाले अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई।
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,’ निज आयुध भुजचारी । भूषन बनमाला, नयन बिसाला,’ सोभासिंधु खरारी ॥
अर्थ :- नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने काश आयुध धारण किए हुए थे, दिव्य आभूषण और माला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे, इस प्रकार सौभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,’ केहि बिधि करूं अनंता । माया गुन ग्यानातीत अमाना,’ वेद पुरान भनंता ॥
अर्थ :- दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी – यह अनंत , मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूं वेद और पुराण तुमको माया गुण और ज्ञान से परे और परिणाम रहित बतलाते हैं।
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,’ जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी,’ जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
अर्थ :- श्रुतिया और संतजन और सुख का समुंद्र , सब गुणों को धाम कहकर जिनका गान करते हैं,वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं।
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,’ रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी, यह उपहासी,’ सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
अर्थ :- वेद कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रोम में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्मांड के समूह भरे हैं वह तुम मेरे गर्भ में रहे इस हंसी की बात को सुनने पर धीर विवेकी पुरुषों की बुद्धि स्थिर नहीं रहती विचलित हो जाती हैं।
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,’ चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई,’ मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
अर्थ :- जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ, तब प्रभु मुस्काए। वह बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं। उन्होंने पूर्व जन्म की सुंदर कथा का कर माता को समझाया जिससे उनके पुत्र का वात्सल्य प्रेम प्राप्त हो और भगवान के प्रति पुत्र भाव हो जाए।
माता पुनि बोली, सो मति डोली,’ तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,’ यह सुख परम अनूपा ॥
अर्थ :- माता की वह बुद्धि बदल गई तब फिर बोली हे तात यह रूप छोड़कर अत्यंत प्रिय बाल लीला करो मेरे लिए यह सुख परम अनुपम होगा।
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,’ होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,’ ते न परहिं भवकूपा ॥
अर्थ :- माता का यह वचन सुनकर देवता के स्वामी सुजान भगवान के बालक रूप हो कर रोना शुरू कर दिया जो यह चरित्र का गान करते हैं वह श्रीहरि पद पाते हैं और संसार रूपी ग्रुप में नहीं गिरते हैं |
|| रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई अर्थ सहित ||
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Ramayan Chaupai,Ramayan Chaupai in Hindi
Ramayan Chaupai
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम पाहीं॥
अर्थ– हे हनुमान जी इस संसार में ऐसा कोई सा भी काम नहीं है जिसे आप नहीं कर सकते, संसार की जितनी भी कठिन से कठिन कार्य है उसे आप क्षण में करते हैं
Ramayan Chaupai
गुर बिनु भव निध तरइ न कोई। जौं बिरंचि संकर सम होई॥
अर्थ– गुरु के बिना कोई भी व्यक्ति इस संसार सागर को पार नहीं कर सकता। गुरु के बिना भगवान की भक्ति नहीं मिल सकती, और ज्ञान प्राप्त भी नहीं होता।
Ramayan Chaupai
बिनु सत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥ सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुघात सुहाई॥
अर्थ – सत्संग के बिना कोई भी व्यक्ति बुद्धिमान नहीं बन सकता और राम जी की कृपा के बिना उसे सत्संग सुलभ नहीं होता क्योंकि सत्संग आनंद और भवसागर में पार व कल्याण की जड़ है, दुष्ट व्यक्ति भी सत्संग से सुधर जाते हैं, जिस प्रकार से पारस से खराब लोहा भी सुंदर सोना में बदल जाता है।
Ramayan Chaupai
जा पर कृपा राम की होई। ता पर कृपा करहिं सब कोई॥ जिनके कपट, दम्भ नहिं माया। तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
अर्थ– जिन व्यक्तियों के ऊपर राम जी की कृपा हो जाती हैं तो उन पर सभी देवी देवता कृपा करने लग जाते हैं, और जिन व्यक्तियों के अंदर कपट छल घृणा पाखंड नहीं होते उनके अंदर श्री रघुपति निवास करते हैं अर्थात उनके ऊपर भगवान की विशेष कृपा होती हैं।
श्री राम जय राम जय जय राम
श्री राम जय राम जय जय राम