झांसी की रानी कविता का भावार्थ, झांसी की रानी कविता कक्षा 6 भावार्थ, झांसी की रानी कविता का सारांश, Rani Laxmi Bai Kavita in hindi, झांसी की रानी कविता का सार
Jhansi ki Rani Kavita -आज हम इस लेख में आपके लिए महान कवित्रियों में से आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे सुभद्रा कुमारी चौहान क्योंकि इन्होंने देशभक्ति कविताओं पर महारत हासिल की है, इन्होंने 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की रानी लक्ष्मीबाई उनके जीवन चरित्र की उनके बलिदान की गाथा उनकी कविताओं में सम्मिलित हैं, और आज हम सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी गई कविताएं हम आपके बीच में शेयर कर रहे हैं, जो साहस, शौर्य, योद्धाओं, चरित्र, संघर्ष, बलिदान के बारे में उनकी कविता में उल्लेख मिलता है।

झांसी की रानी पर बनी कविता यह एक वीर रस कविता है, और कहा जाए तो हिंदी साहित्य की उसे दौर में रची गई वीर रस का ही नहीं बल्कि उसे समय छायावाद का दौर भी था, क्योंकि उसे समय पर अधिकतर कविता छायावाद पर थी सुभद्रा कुमारी चौहान ने इस कविता को रानी लक्ष्मी बाई के एक-एक कन कन को भी अपनी कविता में उनका हर एक शब्द उसमें सम्मिलित हैं।
तो आईए जानते हैं हम सुभद्रा कुमारी चौहान की कुछ चुनिंदा रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर लिखी गई कविता।
झांसी की रानी कविता कक्षा 6 भावार्थ
1
सिंहासन हिल उठे
राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से
नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की
कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की
सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में,
वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने
2
कानपूर के नाना की,
मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम,
पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह,
नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण,
कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें
उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥
सुनी कहानी थी,
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3
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी
वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते
उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना
और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे
उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी
भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥
Rani Laxmi Bai Kavita in hindi
4
हुई वीरता की वैभव के
साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई
लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई
खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि,
सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया,
शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥
5
बुझा दीप झाँसी का
तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने
यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर
अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर
ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा
झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह
तो झाँसी वाली रानी थी॥
6
रानी गई सिधार चिता
अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज,
तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी,
मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी
बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ,
सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह
तो झाँसी वाली रानी थी॥
7
जाओ रानी याद रखेंगे
ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा
स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास,
लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय,
मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी,
तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह
तो झाँसी वाली रानी थी॥
8
रानी बढ़ी कालपी आई,
कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर
गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर
खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी,
किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने
छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह
तो झाँसी वाली रानी थी॥
अंतिम शब्द :-
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